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रौशनी सुब्ह की या शब की स्याही देंगे | शाही शायरी
raushni subh ki ya shab ki syahi denge

ग़ज़ल

रौशनी सुब्ह की या शब की स्याही देंगे

क़ैसर सिद्दीक़ी

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रौशनी सुब्ह की या शब की स्याही देंगे
जो भी देना है तुम्हें ज़िल्ल-ए-इलाही देंगे

शैख़ साहब तो अज़ल से हैं दुश्मन मेरे
खा के क़ुरआँ की क़सम झूटी गवाही देंगे

उन से रखिए न किसी मेहर-ओ-वफ़ा की उम्मीद
ये तो ऐसे हैं कि सूरज को स्याही देंगे

मौसम-ए-लुत्फ़-ए-अता है अभी मयख़ाने में
जाम क्या चीज़ है ये तुम को सुराही देंगे

तो हिक़ारत की नज़र से न उन्हें देख मियाँ
ये फटे कपड़े तुझे ख़िलअ'त-ए-शाही देंगे

ऐसा लगता है हवाओं के ये पागल झोंके
रेत पर लिक्खी इबारत को मिटा ही देंगे

इतनी मायूसी भी अच्छी नहीं खोटे सिक्को
इक न इक दिन तुम्हें हम लोग चला ही देंगे

करके ये फ़ैसला हम घर से चले हैं 'क़ैसर'
कुछ खरी खोटी तुम्हें आज सुना ही देंगे