रौशनी कुछ तो मिले जंगल में
आग लग जाए घने जंगल में
आप को शहर में डर लगता है
हम तो बे-ख़ौफ़ रहे जंगल में
एक इक शाख़ ज़बाँ हो जाए
कोई आवाज़ तो दे जंगल में
पेड़ से पेड़ लगा रहता है
प्यार होता है भरे जंगल में
शहर में कान तरसते ही रहे
चहचहे हम ने सुने जंगल में
शाम होते ही उतर आते हैं
शोख़ परियों के परे जंगल में
शोख़ हिरनों ने क़ुलांचें मारीं
मोर के रक़्स हुए जंगल में
अब भी क़दमों के निशाँ मिलते हैं
गाँव से दूर परे जंगल में
अब भी फिरती है कोई परछाईं
रात के वक़्त भरे जंगल में
ख़ूब थे हज़रत-ए-आदम 'अल्वी'
बस्तियाँ छोड़ गए जंगल में
ग़ज़ल
रौशनी कुछ तो मिले जंगल में
मोहम्मद अल्वी