रौशन कर के उस के नाम की लौ दिल में
मैं ने भी उस को डाल दिया इक मुश्किल में
ये आवाज़ें मेरी ही पैदा-कर्दा हैं
गूँज रहा हूँ मैं दुनिया के हर दिल में
मैं भी आँख की ओट में छुप के बैठा था
वो भी ढूँड रहा था मुझ को महफ़िल में
चूम रहा हूँ उस के इक इक वार को मैं
जाने मैं ने देख लिया क्या क़ातिल में
इस को लहू कहूँ या नक़्श-ए-शोला-ए-जाँ
बस इक मौज-ए-सराब थी रक़्साँ इस दिल में
उस को खोना अस्ल में उस को पाना है
हासिल का ही परतव है ला-हासिल में
ये असरार खुला भी तो जाँ देने पर
'तूर' निहाँ था मैं भी कहीं उस के दिल में
ग़ज़ल
रौशन कर के उस के नाम की लौ दिल में
कृष्ण कुमार तूर

