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रौनक़-ए-ज़हर हो चुका मिरा दिल | शाही शायरी
raunaq-e-zahar ho chuka mera dil

ग़ज़ल

रौनक़-ए-ज़हर हो चुका मिरा दिल

फ़रहत एहसास

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रौनक़-ए-ज़हर हो चुका मिरा दिल
कब का इक शहर हो चुका मिरा दिल

इश्क़ की ऐन गिर चुकी कब की
ख़ारिज-अज़-बहर हो चुका मिरा दिल

हो गई देर तुझ से बाद-ए-सबा
अब तो दोपहर हो चुका मिरा दिल

लौट जाएँ बड़े सफ़ीना-ए-इश्क़
बहर से नहर हो चुका मिरा दिल

'फ़रहत-एहसास' उठा ये दस्तर-ख़्वान
लुक़्मा-ए-क़हर हो चुका मिरा दिल