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रौनक़ बढ़ेगी रू-ए-नशात-ए-जमाल की | शाही शायरी
raunaq baDhegi ru-e-nashat-e-jamal ki

ग़ज़ल

रौनक़ बढ़ेगी रू-ए-नशात-ए-जमाल की

नरेश कुमार शाद

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रौनक़ बढ़ेगी रू-ए-नशात-ए-जमाल की
थोड़ी सी गर्द डाल दो इस पर मलाल की

देती रही फ़रेब उन्हें भी तिरी वफ़ा
आग़ाज़ में भी जिन को ख़बर थी मआल की

अब इस मक़ाम पर है मिरी ज़िंदगी जहाँ
कैफ़िय्यत एक सी है नशात ओ मलाल की

अल्लाह-रे जज़्ब-ए-दीद कि अहल-ए-निगाह से
ख़ुद हुस्न भीक माँग रहा है जमाल की

दिल फिर भी आ गया ग़म-ए-दौराँ के फेर में
हर-चंद मस्लहत ने बड़ी देख-भाल की

फूलों की दिलकशी हो कि तारों की रौशनी
परछाइयाँ हैं सब मिरे हुस्न-ए-ख़याल की