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रस्ते में जितने पेड़ मिले बे-सदा मिले | शाही शायरी
raste mein jitne peD mile be-sada mile

ग़ज़ल

रस्ते में जितने पेड़ मिले बे-सदा मिले

मसूद मैकश मुरादाबादी

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रस्ते में जितने पेड़ मिले बे-सदा मिले
घर से निकल पड़े थे कि ताज़ा हवा मिले

इंसान की तलाश है रब्ब-ए-करीम को
इंसाँ की आरज़ू है कहीं पर ख़ुदा मिले

जो शख़्स लम्हा लम्हा तजस्सुस के बावजूद
ख़ुद से न मिल सका हो ज़माने से क्या मिले

ये ज़िंदगी कुछ ऐसे मिरे हाथ आ गई
जैसे किसी फ़क़ीर को सिक्का पड़ा मिले

धरती ने आँसुओं को पुकारा है दोस्तो
बादल तमाम अब के समुंदर से जा मिले

हर बार उसी से एक नया इश्क़ कीजिए
जब भी मिले वो शख़्स तो बदला हुआ मिले