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रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है | शाही शायरी
raqibon ka mujhse gila ho raha hai

ग़ज़ल

रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है

बेखुद बदायुनी

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रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है
ये क्या कर रहे हो ये क्या हो रहा है

दुआ को नहीं राह मिलती फ़लक की
कुछ ऐसा हुजूम-ए-बला हो रहा है

वो जो कर रहे हैं बजा कर रहे हैं
ये जो हो रहा है बजा हो रहा है

वो ना-आश्ना बेवफ़ा मेरी ज़िद से
ज़माने का अब आश्ना हो रहा है

छुपाए हुए दिल को फिरते हैं 'बेख़ुद'
कि ख़्वाहाँ कोई दिल-रुबा हुआ है