रंजिशें सब छोड़ दीं सब से लड़ाई छोड़ दी
ऐब था सच बोलना मैं ने बुराई छोड़ दी
कू-ए-जानाँ में भला अब देखने को क्या मिला
सुन रहा हूँ आप ने भी बेवफ़ाई छोड़ दी
ज़ेहन में उभरे थे यूँ ही बेवफ़ा यारों के नाम
लिखते लिखते क्यूँ क़लम ने रौशनाई छोड़ दी
हम से पूछो किस लिए ख़ाली ख़ज़ाने हो गए
शहज़ादों ने फ़क़ीरों की गदाई छोड़ दी
ग़ज़ल
रंजिशें सब छोड़ दीं सब से लड़ाई छोड़ दी
नाशिर नक़वी