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रंज-ओ-आलाम से मोहब्बत है | शाही शायरी
ranj-o-alam se mohabbat hai

ग़ज़ल

रंज-ओ-आलाम से मोहब्बत है

साहिर होशियारपुरी

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रंज-ओ-आलाम से मोहब्बत है
सई-ए-नाकाम से मोहब्बत है

ज़िंदगी-भर न हो सहर जिस की
हम को उस शाम से मोहब्बत है

क्या ख़तर गर्दिश-ए-फ़लक से हमें
गर्दिश-ए-जाम से मोहब्बत है

बादा सहबा शराब से दारद
ऐसे हर नाम से मोहब्बत है

बादा-ओ-जाम से मोहब्बत थी
बादा-ओ-जाम से मोहब्बत है

हर घड़ी दिल में याद है उन की
बस उसी नाम से मोहब्बत है

उन में शान-ए-ख़ुदा है जल्वा-फ़गन
हम को असनाम से मोहब्बत है

दुश्मन-ए-जाँ है ये मोहब्बत भी
सैद को दाम से मोहब्बत है

क़द्र-ए-ईसार क्या वो समझेंगे
जिन को अंजाम से मोहब्बत है

उस की तशरीह क्या हो ऐ 'साहिर'
दर्द-ए-बे-नाम से मोहब्बत है