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रंज है उस रंज से हम को तो ग़म उस ग़म से है | शाही शायरी
ranj hai us ranj se hum ko to gham us gham se hai

ग़ज़ल

रंज है उस रंज से हम को तो ग़म उस ग़म से है

सफ़ी औरंगाबादी

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रंज है उस रंज से हम को तो ग़म उस ग़म से है
जो शिकायत हम को उन से है वो उन को हम से है

क्या पड़ी है फिर किसी के वास्ते रोता है क्यूँ
आबरू-ए-इश्क़ अपने दीदा-ए-पुर-नम से है

झूटे मुँह कोई तसल्ली भी नहीं देता कभी
फिर ये क्यूँ साहब सलामत अपनी इक आलम से है

दुश्मनों का दो ही दिन में सब भरम खुल जाएगा
उन की सारी शान-ओ-शौकत एक मेरे दम से है

हाथ जोड़े मिन्नतें कीं ख़ैर वो तो मन गए
और लोगों को भी अब ऐसी तमन्ना हम से है

इस मज़ाक़-ए-ख़ास के भी लोग देखे हैं कहीं
आप की भी जान-पहचान आख़िर इक आलम से है

सब 'सफ़ी' की आह-ए-पुर-बे-साख़ता कहते हैं वाह
उस का रोना भी मगर कुछ ताल से है सम से है