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रंगों की पहचान नहीं कर सकता था | शाही शायरी
rangon ki pahchan nahin kar sakta tha

ग़ज़ल

रंगों की पहचान नहीं कर सकता था

मोहम्मद मुस्तहसन जामी

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रंगों की पहचान नहीं कर सकता था
तुझ जैसा इंसान नहीं कर सकता था

मैं ने इतने काम किए हैं फ़ुर्सत में
पूरा पाकिस्तान नहीं कर सकता था

एक फ़क़ीर की आह ने वो भी कर डाला
जो शाही फ़रमान नहीं कर सकता था

अश्कों से शादाब रहीं तेरी आँखें
मैं जिन को वीरान नहीं कर सकता था

अपना आप बता सकता था पूछने पर
बस ख़ुद को आसान नहीं कर सकता था