रंग ये है अब हमारे इश्क़ की तासीर का
हुस्न आईना बना है दर्द की तस्वीर का
एक अर्सा हो गया फ़रहाद को गुज़रे हुए
आओ फिर ताज़ा करें अफ़्साना जू-ए-शीर का
गुलसिताँ का ज़र्रा ज़र्रा जाग उठे अंदलीब
लुत्फ़ है इस वक़्त तेरे नाला-ए-शब-गीर का
लीजिए ऐ शैख़ पहले अपने ईमाँ की ख़बर
दीजिए फिर शौक़ से फ़तवा मिरी तकफ़ीर का
ख़्वाब-ए-हस्ती को समझने के लिए बेचैन हूँ
ए'तिबार आता नहीं मुझ को किसी ताबीर का
जिस ने दी आख़िर ग़ुरूर-ए-हुस्न-ए-यूसुफ़ को शिकस्त
अल्लाह अल्लाह हौसला इस दस्त-ए-दामन-गीर का
तोड़ कर निकले क़फ़स तो गुम थी राह-ए-आशियाँ
वो अमल तदबीर का था ये अमल तक़दीर का
गो ज़माना हो गया गुलज़ार से निकले हुए
है मिज़ाज अब तक वही 'रैहानी' दिल-गीर का
ग़ज़ल
रंग ये है अब हमारे इश्क़ की तासीर का
हेंसन रेहानी