रंग लाया दिवाना-पन मेरा
सी रहे हैं वो पैरहन मेरा
मैं नवेद-ए-बहार लाया था
तज़्किरा हर चमन चमन मेरा
शबनम-ए-फ़िक्र-ओ-गुल्सितान-ए-सुख़न
जगमगाता है फूलबन मेरा
लाला-ओ-गुल खिले हैं काँटों पर
इन में उलझा था पैरहन मेरा
ये भी अब तक नहीं हुआ मालूम
मैं सजन का हूँ या सजन मेरा
जो भी है सब तिरी इनायत है
जान मेरी न ये बदन मेरा
क्या तुझे भी ख़याल आता है
कभी भूले से जान-ए-मन मेरा
उस ने देखा था मुस्कुरा के कभी
उम्र भर दिल रहा मगन मेरा
ऐ शराब-ए-सुख़न के मतवाले
कुछ सुख़न ही नहीं है फ़न मेरा
'वज्द' किस का वतन कहाँ का वतन
वो जहाँ हैं वहीं वतन मेरा
ग़ज़ल
रंग लाया दिवाना-पन मेरा
सिकंदर अली वज्द