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रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी | शाही शायरी
rang lati bhi to kis taur jabin-sai meri

ग़ज़ल

रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी

राहुल झा

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रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी
जब ख़ुद उस को न थी दरकार शनासाई मिरी

ये मिरी चीज़ है सो इस का भरोसा है मुझे
ख़ुद मिरे काम न आएगी मसीहाई मिरी

उस ने इक बार तो झाँका भी था मुझ में लेकिन
उस से देखी न गई वुसअत-ए-तन्हाई मिरी

तुम ये क्या सोच के गुज़री थी मिरे माज़ी से
तुम ये क्या सोच के शादाबी उठा लाई मिरी

बहर-ए-पायाब समझ के यहाँ उतरो न अभी
मेरा दिल ख़ुद भी नहीं जानता गहराई मिरी

तेरी ख़ुश्बू तिरी तासीर जुदा है मुझ से
तेरी मिट्टी से न हो पाएगी भरपाई मिरी