रंग होने लगे ज़ाहिर मेरे
ध्यान रख कुछ तो मुसव्विर मेरे
यूँ न आँखों से हुआ कर ओझल
बुझने लगते हैं मनाज़िर मेरे
काम आई न ख़मोशी मेरी
राज़ खुल ही गए आख़िर मेरे
गूँज उठा नग़्मों से आँगन मेरा
लौट आए सभी ताइर मेरे
ग़ज़ल
रंग होने लगे ज़ाहिर मेरे
सुनील आफ़ताब