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रंग-ए-गुल और लगा मौज-ए-सबा और लगी | शाही शायरी
rang-e-gul aur laga mauj-e-saba aur lagi

ग़ज़ल

रंग-ए-गुल और लगा मौज-ए-सबा और लगी

महमूदुल हसन

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रंग-ए-गुल और लगा मौज-ए-सबा और लगी
किस के आने से गुलिस्ताँ की फ़ज़ा और लगी

आज माइल है वो इकराम-ओ-इनायात पे क्या
क्यूँ हमें कूचा-ए-जानाँ की हवा और लगी

लड़खड़ाने पे किसे रक़्स का होता है गुमाँ
फ़स्ल-ए-गुल आई तो फिर लग़्ज़िश-ए-पा और लगी

दिल धड़कने के हैं आदाब मगर तेरे हुज़ूर
जाने क्यूँ सीने में धड़कन की अदा और लगी

किस तरह कहता कोई तुझ को सितमगर ऐ दोस्त
सच तो ये है कि हमें तेरी जफ़ा और लगी