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रंग-ए-दुनिया कितना गहरा हो गया | शाही शायरी
rang-e-duniya kitna gahra ho gaya

ग़ज़ल

रंग-ए-दुनिया कितना गहरा हो गया

मदन मोहन दानिश

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रंग-ए-दुनिया कितना गहरा हो गया
आदमी का रंग फीका हो गया

रात क्या होती है हम से पूछिए
आप तो सोए सवेरा हो गया

डूबने की ज़िद पे कश्ती आ गई
बस यहीं मजबूर दरिया हो गया

आज ख़ुद को बेचने निकले थे हम
आज ही बाज़ार मंदा हो गया

ग़म अँधेरे का नहीं 'दानिश' मगर
वक़्त से पहले अंधेरा हो गया