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रंग और रूप से जो बाला है | शाही शायरी
rang aur rup se jo baala hai

ग़ज़ल

रंग और रूप से जो बाला है

वज़ीर आग़ा

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रंग और रूप से जो बाला है
किस क़यामत के नक़्श वाला है

चाप उभरी है दिल के अंदर से
कोई पलकों पे आने वाला है

ज़िंदगी है लहू का इक छींटा
उम्र ज़ख़्मों की दीप-माला है

तोल सकता है कौन ख़ुशबू को
फिर भी हम ने ये रोग पाला है

कितना आबाद है घना जंगल
कैसा सुनसान ये शिवाला है

देख इस तेरी चाँदनी-शब ने
कितने तारों को रौंद डाला है

कपकपाने लगे हैं लब उस के
जाने क्या बात करने वाला है