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इरम के नूर से तीरा मकाँ जलाए गए | शाही शायरी
iram ke nur se tera makan jalae gae

ग़ज़ल

इरम के नूर से तीरा मकाँ जलाए गए

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

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इरम के नूर से तीरा मकाँ जलाए गए
चराग़ हम थे कहाँ के कहाँ जलाए गए

हमीं को उस ने पयम्बर किया मशीअ'त का
हमीं से राज़-ए-मशीअ'त मगर छुपाए गए

कभी तो हम पे खुलेंगे ख़ुशी के दरवाज़े
इसी उमीद पे हम तेरे ग़म उठाए गए

जो कल तलक रहे आसी ख़िताब-ए-महफ़िल में
वो लोग आज तिरे नाम से बुलाए गए

उगल रहे थे जो लावा ग़म-ए-तअ'स्सुब का
हमारे ख़ूँ से वो आतिश-फ़िशाँ बुझाए गए

रह-ए-हयात में भड़की है जब निफ़ाक़ की आग
मगर इस आग का लुक़्मा हमीं बनाए गए

रफ़ू किया किए चाक-ए-वफ़ा-ओ-तार-ए-क़बा
वो रूठते रहे और हम उन्हें मनाए गए