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रहती है सबा जैसे ख़ुशबू के तआ'क़ुब में | शाही शायरी
rahti hai saba jaise KHushbu ke taaqub mein

ग़ज़ल

रहती है सबा जैसे ख़ुशबू के तआ'क़ुब में

आरिफ़ अंसारी

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रहती है सबा जैसे ख़ुशबू के तआ'क़ुब में
कुछ यूँ ही ज़माना है उर्दू के तआ'क़ुब में

लौटे नहीं अब तक वो बरसों हुए निकले थे
पाज़ेब की चाहत में घुँगरू के तआ'क़ुब में

इक जादू की डिबिया है जो उन का खिलौना है
बच्चे नहीं रहते अब जुगनू के तआ'क़ुब में

मासूम सी आँखों से इक बूँद ही टपकी थी
बादल उमड आए हैं आँसू के तआ'क़ुब में

नक़्क़ालों के पीछे क्यूँ फिरते हो हुनर वालो
देखा है क्या सागर को सरजू के तआ'क़ुब में

अफ़्कार के फूलों की वादी है हदफ़ 'आरिफ़'
हर शाइर-ए-उर्दू है ख़ुशबू के तआ'क़ुब में