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रहती है सब के पास तन्हाई | शाही शायरी
rahti hai sab ke pas tanhai

ग़ज़ल

रहती है सब के पास तन्हाई

इंद्र सराज़ी

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रहती है सब के पास तन्हाई
फिर भी है क्यूँ उदास तन्हाई

दिल नहीं लगता फिर कहीं उस का
आ गई जिस को रास तन्हाई

इश्क़ ने फेंका था पहन के उसे
पहने है जो लिबास-ए-तन्हाई

साथ सब का दिया है अब लेकिन
ख़ुद है कितनी उदास तन्हाई

ज़िंदगी-भर के साथी हैं मेरे
जाम साक़ी गिलास तन्हाई

कौन जाने हुआ है क्या 'इंद्र'
रहती है क्यूँ उदास तन्हाई