रहता है मेरे दिल में तिरा नूर रात दिन
इक शो'ला बर्क़-ज़न है सर-ए-तूर रात दिन
मानिंद मेहर-ओ-माह हसीनों में है फ़िराक़
क्यूँ एक एक से न रहे दूर रात दिन
हम ने मिलाई आँख ये मुँह है सहाब का
जारी है ज़ख़्म-ए-चश्म का नासूर रात दिन
तेरे लिए मिसाल-ए-मह-ओ-मेहर-ओ-नज्म-ओ-चर्ख़
फिरते हैं लुंज-ओ-लंग-ओ-कर-ओ-कोर रात दिन
कुछ ग़म फ़िराक़ का है न कुछ वस्ल की ख़ुशी
हूँ उस के ज़ौक़-ओ-शौक़ में मसरूर रात दिन
मुँह किस का मेरा ज़िक्र करे उस के रू-ब-रू
रहता है वर्ना ख़ल्क़ का मज़कूर रात दिन
ख़्वाहिश हर आइना है उधर भी नज़र रहे
गो आईना नज़र के है मंज़ूर रात दिन
दिल में जो बस रही है कोई नाज़नीं हसीं
फिरती है मेरी आँखों में इक हूर रात दिन
सोज़िश है दाग़-ए-हिज्र में इस से सिवा 'वक़ार'
भरता हूँ जितना मर्हम-ए-काफ़ूर रात दिन
ग़ज़ल
रहता है मेरे दिल में तिरा नूर रात दिन
किशन कुमार वक़ार

