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रहने दे रतजगों में परेशाँ मज़ीद उसे | शाही शायरी
rahne de ratjagon mein pareshan mazid use

ग़ज़ल

रहने दे रतजगों में परेशाँ मज़ीद उसे

बेदिल हैदरी

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रहने दे रतजगों में परेशाँ मज़ीद उसे
लगने दे एक और भी ज़र्ब-ए-शदीद उसे

जी हाँ वो इक चराग़ जो सूरज था रात का
तारीकियों ने मिल के किया है शहीद उसे

फ़ाक़े न झुग्गियों से सड़क पर निकल पड़ें
आफ़त में डाल दे न ये बोहरान-ए-ईद उसे

फ़र्त-ए-ख़ुशी से वो कहीं आँखें न फोड़ ले
आराम से सुनाओ सहर की नवीद उसे

हर-चंद अपने क़त्ल में शामिल वो ख़ुद भी था
फिर भी गवाह मिल न सके चश्म-दीद उसे

बाज़ार अगर है गर्म तो कर्तब कोई दिखा
सब गाहकों से आँख बचा कर ख़रीद उसे

मुद्दत से पी नहीं है तो फिर फ़ाएदा उठा
वो चल के आ गया है तो कर ले कशीद उसे

मश्कूक अगर है ख़त की लिखाई तो क्या हुआ
जाली बना के भेज दे तू भी रसीद उसे