रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
हम को एहसास-ए-जुदाई से बचाते रहना
ख़ुद-गज़ीदा हूँ बड़ा ज़हर है मेरे अंदर
इस का तिरयाक़ है रातों को जगाते रहना
मुद्दतों बअ'द जो देखोगे तो डर जाओगे
अपने को आइना हर रोज़ दिखाते रहना
ख़ुद-फ़रेबी से हसीं-तर नहीं कोई जज़्बा
ख़ुद जो रहना है तो ये धोका भी खाते रहना
ये तो मालूम है मरने पे मिलेगी उजरत
कार-ए-फ़नकार है तस्वीर बनाते रहना
अपनी ना-अहली पे क़ातिल को न तैश आ जाए
ओछे ज़ख़्मों को ज़रा उस से छुपाते रहना
हारने जीतने से कुछ नहीं होता 'वामिक़'
खेल हर साँस पे है दाँव लगाते रहना

ग़ज़ल
रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
वामिक़ जौनपुरी