EN اردو
रहे दरिया-ए-सुख़न यूँही रवाँ मेरे बा'द | शाही शायरी
rahe dariya-e-suKHan yunhi rawan mere baad

ग़ज़ल

रहे दरिया-ए-सुख़न यूँही रवाँ मेरे बा'द

ज़िया फ़ारूक़ी

;

रहे दरिया-ए-सुख़न यूँही रवाँ मेरे बा'द
बाँझ हो जाए न ग़ालिब की ज़बाँ मेरे बा'द

कौन देगा उन्हें ख़ुश्बू का जहाँ मेरे बा'द
किस से लिपटेंगे ये नाज़ुक-बदनाँ मेरे बा'द

कू-ब-कू फिरती है अब चारों-तरफ़ आवारा
बू-ए-गुल को न मिली जा-ए-अमाँ मेरे बा'द

लाख मैं नंग-ए-सुख़न हूँ प यक़ीं है मुझ को
लोग ढूँडेंगे मिरा तर्ज़-ए-बयाँ मेरे बा'द

छोड़ कर जाऊँगा मैं घर में उजाले का सुबूत
काम आएगा ये ताक़ों का धुआँ मेरे बा'द

यार सब चल दिए बाज़ार-ए-हवस की जानिब
हो गई राह-ए-जुनूँ कम-गुज़राँ मेरे बा'द

मैं कि ख़ातम भी हूँ ख़ुद अपनी तबीअ'त का 'ज़िया'
क़त हुआ सिलसिला-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ मेरे बा'द