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रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह | शाही शायरी
raha asir kai sal naqsh-e-pa ki tarah

ग़ज़ल

रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह

रिफ़अत सुलतान

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रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह
ख़ुदा का शुक्र अब आज़ाद हूँ हवा की तरह

मिरे हबीब मुझे इज़्न-ए-बारयाबी दे
खड़ा हूँ दर पे तिरे आह-ए-ना-रसा की तरह

गुनाहगार हूँ इक मैं ही शहर में शायद
कि बात करते हैं सब मुझ से पारसा की तरह

अभी मिला नहीं मुझ को सुराग़ मंज़िल का
भटक रहा हूँ अभी अपने रहनुमा की तरह

किसे ख़बर कि ये जिद्दत है या सियासत है
जफ़ा करे भी तो करता है वो वफ़ा की तरह

मुनाफ़िक़त का नया है ये दिल-फ़रेब अंदाज़
मुझे मिला मिरा दुश्मन भी आश्ना की तरह

मिरे ज़मीर का ये हुक्म है मुझे 'रिफ़अत'
रखी है मैं ने जो इस दौर में वफ़ा की तरह