रह जाए या बला से ये जान रह न जाए
तेरा तो ऐ सितम-गर अरमान रह न जाए
जो दिल की हसरतें हैं सब दिल में हों तो बेहतर
इस घर से कोई बाहर मेहमान रह न जाए
इक़रार-ए-वस्ल तो है ऐसा न हो न आएँ
मुश्किल हमारी हो कर आसान रह न जाए
ऐ सोज़-ए-ग़म जला दे ऐ दर्द ख़ूँ रुला दे
कुछ उन की दिल-लगी का सामान रह न जाए
सब मंज़िलें हुईं तय महशर है और ऐ दिल
ये एक रह गया है मैदान रह न जाए
वो जाम-ए-कुफ़्र-परवर भर दे कि मस्त कर दे
मस्तों के दिल में साक़ी ईमान रह न जाए
आ कर पलट न ख़ाली ऐ मर्ग जान ले जा
'फ़ानी' के सर पे तेरा एहसान रह न जाए
ग़ज़ल
रह जाए या बला से ये जान रह न जाए
फ़ानी बदायुनी