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रह गया कम ही गो सफ़र बाक़ी | शाही शायरी
rah gaya kam hi go safar baqi

ग़ज़ल

रह गया कम ही गो सफ़र बाक़ी

सलमान अख़्तर

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रह गया कम ही गो सफ़र बाक़ी
दिल में ख़्वाहिश का है गुज़र बाक़ी

क्या नदी फिर से आज़माएगी
क्या अभी और हैं भँवर बाक़ी

क्या अकेले ही आगे जाना है
क्या नहीं कोई हम-सफ़र बाक़ी

क्या वो मुझ से कभी न बिछड़ेगा
क्या नहीं दिल में कोई डर बाक़ी

क्या नहीं जानता मुझे कोई
क्या नहीं शहर में वो घर बाक़ी