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रह-ए-वफ़ा में उन्हीं की ख़ुशी की बात करो | शाही शायरी
rah-e-wafa mein unhin ki KHushi ki baat karo

ग़ज़ल

रह-ए-वफ़ा में उन्हीं की ख़ुशी की बात करो

अबु मोहम्मद वासिल

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रह-ए-वफ़ा में उन्हीं की ख़ुशी की बात करो
वो ज़िंदगी हैं तो फिर ज़िंदगी की बात करो

फ़ुग़ान-ए-नीम-शबी ज़ीस्त तक रहे क़ाएम
हयात सोज़-ए-जिगर है इसी की बात करो

निज़ाम-ए-हुस्न से वाक़िफ़ हो फिर वफ़ा कैसी
उन्हीं पे मिट के नई ज़िंदगी की बात करो

ज़बान-ए-क़ाल को दे कर सुकूत का पैग़ाम
ज़बान-ए-हाल से पैहम उसी की बात करो

करम है उन का जो हो जाए 'वासिल'-ए-जानाँ
वहाँ ख़ुदी की न कुछ बे-ख़ुदी की बात करो