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रह-ए-वफ़ा के हर इक पेच-ओ-ख़म को जान लिया | शाही शायरी
rah-e-wafa ke har ek pech-o-KHam ko jaan liya

ग़ज़ल

रह-ए-वफ़ा के हर इक पेच-ओ-ख़म को जान लिया

निकहत बरेलवी

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रह-ए-वफ़ा के हर इक पेच-ओ-ख़म को जान लिया
जुनूँ में दश्त ओ बयाबाँ तमाम छान लिया

हर इक मक़ाम से हम सुर्ख़-रू गुज़र आए
क़दम क़दम पे मोहब्बत ने इम्तिहान लिया

गिराँ हुई थी ग़म-ए-ज़िंदगी की धूप मगर
किसी की याद ने इक शामियाना तान लिया

तुम्हीं को चाहा बहर-हाल और तुम्हारे सिवा
ज़मीन माँगी किसी से न आसमान लिया

ब-एहतियात चले राह-ए-ज़िंदगी फिर भी
जगह जगह हमें गर्द-ए-सफ़र ने आन लिया

वो बुत भी दुश्मन-ए-ईमान-ओ-आगही था मगर
उसे जो देखा तो हम ने ख़ुदा को मान लिया