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रह-ए-जुनूँ में कभी कामयाब हम भी थे | शाही शायरी
rah-e-junun mein kabhi kaamyab hum bhi the

ग़ज़ल

रह-ए-जुनूँ में कभी कामयाब हम भी थे

रहबर जौनपूरी

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रह-ए-जुनूँ में कभी कामयाब हम भी थे
कभी हवाला-ए-दश्त-ओ-सराब हम भी थे

तिरी निगाह ने गौहर बना दिया वर्ना
हिसार-ए-मौज में मिस्ल-ए-हबाब हम भी थे

जुनूँ ने हम को भी बख़्शी थी शान-ए-दर-ब-दरी
जहान-ए-फ़िक्र में ख़ाना-ख़राब हम भी थे

हमारे ज़र्फ़ को रुत्बों से तोलने वालो
इसी दयार में इज़्ज़त-मआब हम भी थे

अँधेरे हो गए मंसूब हम से अब वर्ना
इस आसमाँ में कभी आफ़्ताब हम भी थे