रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीता राम
तुलसी की रामायन के
राम की लीला वाले राम
बचपन में थे दोस्त मिरे
और लड़कपन में हम-जाम
क़स्बे क़स्बे नगर नगर
जहाँ भी ले पहुँचे अय्याम
नाम तुम्हारा चलता था
बन जाते थे बिगड़े काम
देस तो क्या परदेस में भी
हमराही थे तुम हर गाम
मिले जकार्ता में भी तुम
लीला में बन कर इस्लाम
देश जो लौटा फिर न मिले
ढूँडा तुम को हर इक धाम
पता चला की क़ैद हो तुम
चारों तरफ़ त्रिशूल का दाम
रथ-यात्रा में मारे गए
राम की लीला वाले राम
और दिसम्बर छे के बा'द
जिस जा देखो क़त्ल-ए-आम
रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम
ग़ज़ल
रघुपति राघव राजा राम
अशोक लाल