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रफ़्ता रफ़्ता होश मुझ को इस क़दर आ जाएगा | शाही शायरी
rafta rafta hosh mujhko is qadar aa jaega

ग़ज़ल

रफ़्ता रफ़्ता होश मुझ को इस क़दर आ जाएगा

मुकेश आलम

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रफ़्ता रफ़्ता होश मुझ को इस क़दर आ जाएगा
आँसुओं को गीत लिखने का हुनर आ जाएगा

ढूँडना मेरी तहों में प्यास अपनी के निशाँ
मेरी आँखों में समुंदर भी नज़र आ जाएगा

अपने सीने में दबा रक्खा है मैं नें उस का दिल
आख़िरश थक जाएगा तो अपने घर आ जाएगा

रौशनाई न सही 'आलम' लिखेगा दास्ताँ
काम अपने एक दिन ख़ून-ए-जिगर आ जाएगा