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रफ़्ता रफ़्ता दिल-ए-बे-ताब ठहर जाएगा | शाही शायरी
rafta rafta dil-e-be-tab Thahar jaega

ग़ज़ल

रफ़्ता रफ़्ता दिल-ए-बे-ताब ठहर जाएगा

उरूज ज़ैदी बदायूनी

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रफ़्ता रफ़्ता दिल-ए-बे-ताब ठहर जाएगा
रफ़्ता रफ़्ता तिरी नज़रों का असर जाएगा

दाद बे-दाद की इस में कोई तख़सीस नहीं
नक़्श-ए-हस्ती में कोई रंग तो भर जाएगा

आप अगर माइल-ए-तज्दीद-ए-सितम हो जाएँ
रंग-ए-तालीम-ए-वफ़ा और निखर जाएगा

अर्ज़-ए-तिश्ना पे बरस अब्र-ए-रवाँ खुल के बरस
बात रह जाएगी ये वक़्त गुज़र जाएगा

धूप और छाँव मुसल्लम मगर अपनी हद में
वक़्त पाबंद नहीं है कि ठहर जाएगा

रौशनी में है चराग़ों के तले तारीकी
हम समझते थे कि माहौल सँवर जाएगा

इश्क़ तो अपनी जगह कैफ़-ए-मुसलसल है 'उरूज'
नश्शा-ए-बादा नहीं है जो उतर जाएगा