EN اردو
राज़-ए-फ़ितरत निहाँ था निहाँ है अभी | शाही शायरी
raaz-e-fitrat nihan tha nihan hai abhi

ग़ज़ल

राज़-ए-फ़ितरत निहाँ था निहाँ है अभी

शोला हस्पानवी

;

राज़-ए-फ़ितरत निहाँ था निहाँ है अभी
आसमाँ से परे आसमाँ है अभी

मैं अज़ल से सुनाता रहा हूँ मगर
ना-मुकम्मल मिरी दास्ताँ है अभी

हम-सफ़र छोड़ कर चल दिए हैं तो क्या
साथ मेरे ये उम्र-ए-रवाँ है अभी

उम्र-भर सू-ए-मंज़िल चला हूँ मगर
फ़ासला जूँ का तूँ दरमियाँ है अभी

राहतों के वो दिन जाने कब आएँगे
ज़िंदगी दर्द की तर्जुमाँ है अभी

मंज़िल-ए-आशिक़ी हम कहाँ पाएँगे
दिल में एहसास-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ है अभी