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रातों में जब सुनी कभी शहनाई देर तक | शाही शायरी
raaton mein jab suni kabhi shahnai der tak

ग़ज़ल

रातों में जब सुनी कभी शहनाई देर तक

मोनी गोपाल तपिश

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रातों में जब सुनी कभी शहनाई देर तक
रग-रग में तेरे ग़म ने ली अंगड़ाई देर तक

सुनते हैं बज़्म-ए-यार में चेहरे उतर गए
किस ने वफ़ा की दास्ताँ दोहराई देर तक

ज़ीने से आसमाँ के उतर आई चाँदनी
आँगन में आ के बैठी तो सुस्ताई देर तक

इक मुख़्तसर से लम्हे ने पहचान छीन ली
यूँ तो रही है उन से शनासाई देर तक

मिट मिट के नक़्श दिल पे उभरते रहे 'तपिश'
ज़ख़्मों से खेलती रही पुर्वाई देर तक