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रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया | शाही शायरी
raaton ke KHauf din ki udasi ne kya diya

ग़ज़ल

रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया

फ़ज़्ल ताबिश

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रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया
साए के तौर लेट के चलना सिखा दिया

कमरे में आ के बैठ गई धूप मेज़ पर
बच्चों ने खिलखिला के मुझे भी जगा दिया

वो कल शराब पी के भी संजीदा ही रहा
इस एहतियात ने उसे मुझ से छुड़ा दिया

जब कोई भी उतर न सका मेरे जिस्म में
सब हाल मैं ने सिर्फ़ उसी को सुना दिया

अपना लहू निचोड़ के देखूँगा एक दिन
जीने के ज़हर ने उसे क्या कुछ बना दिया