रात से जंग कोई खेल नईं
तुम चराग़ों में इतना तेल नईं
आ गया हूँ तो खींच अपनी तरफ़
मेरी जानिब मुझे धकेल नईं
जब मैं चाहूँगा छोड़ जाऊँगा
इक सराए है जिस्म जेल नईं
बेंच देखी है ख़्वाब में ख़ाली
और पटरी पर उस पे रेल नईं
जिस को देखा था कल दरख़्त के गिर्द
वो हरा अज़दहा था बेल नईं
ग़ज़ल
रात से जंग कोई खेल नईं
अम्मार इक़बाल