रात फिर ख़्वाब में आने का इरादा कर के
चाँद डुबा है अभी महव-ए-नज़ारा कर के
तिश्नगी हद से गुज़र जाएगी साहिल के क़रीब
फ़ाएदा क्या है समुंदर का तक़ाज़ा कर के
हैरती हूँ अभी टूटा है भरम उल्फ़त का
दे गया मात वो फिर मुझ को बहाना कर के
करता रहता था मज़ाहन वो बहुत सी बातें
अब रक़म करते रहे उस को फ़साना कर के
मात छल शह तो फ़क़त खेल है इक इस के लिए
रख दिया मेरी मोहब्बत को तमाशा कर के
छोड़ जाने को वो कहता था प मा'लूम न था
यूँ चला जाएगा दम-भर में पराया कर के
आख़िर 'असरा' तिरी फ़ितरत में ये उजलत क्यूँ है
देख ले रंज अभी और गवारा कर के
ग़ज़ल
रात फिर ख़्वाब में आने का इरादा कर के
असरा रिज़वी