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रात को बाहर अकेले घूमना अच्छा नहीं | शाही शायरी
raat ko bahar akele ghumna achchha nahin

ग़ज़ल

रात को बाहर अकेले घूमना अच्छा नहीं

इफ़्तिख़ार नसीम

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रात को बाहर अकेले घूमना अच्छा नहीं
छोड़ आओ उस को घर तक रास्ता अच्छा नहीं

ग़ैर हो कोई तो उस से खुल के बातें कीजिए
दोस्तों का दोस्तों से ही गिला अच्छा नहीं

इत्तिफ़ाक़न मिल गया तो पूछ लो मौसम का हाल
क्यूँ नहीं मिलता वो उस से पूछना अच्छा नहीं

चूम कर जिस को ख़ुदा के हाथ सौंपा था 'नसीम'
उस के बारे में हमेशा सोचना अच्छा नहीं