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रात के वक़्त कोई गीत सुनाती है हवा | शाही शायरी
raat ke waqt koi git sunati hai hawa

ग़ज़ल

रात के वक़्त कोई गीत सुनाती है हवा

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

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रात के वक़्त कोई गीत सुनाती है हवा
शाख़-दर-शाख़ भला किस को बुलाती है हवा

सर्द रात अपनी नहीं कटती कभी तेरे बग़ैर
ऐसे मौसम में तो और आग लगाती है हवा

एक मानूस सी ख़ुशबू से महकती है फ़ज़ा
जब तू आता है बहुत शोर मचाती है हवा

किन गुज़रगाहों के हैं गर्द-ओ-ग़ुबार आँखों में
रोज़ पतझड़ के हमें ख़्वाब दिखाती है हवा

ज़िंदगी जलता हुआ एक दिया है 'अंजुम'
देखना ये है कहाँ जा के बुझाती है हवा