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रात के पिछले पहर इक सनसनाहट सी हुई | शाही शायरी
raat ke pichhle pahar ek sansanahaT si hui

ग़ज़ल

रात के पिछले पहर इक सनसनाहट सी हुई

ज़ुबैर शिफ़ाई

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रात के पिछले पहर इक सनसनाहट सी हुई
और फिर एक और फिर एक और आहट सी हुई

दफ़अतन ज़ंजीर खंकी यक-ब-यक पट खुल गए
शम्अ की लौ में अचानक थरथराहट सी हुई

ख़स्ता-ए-दीवार-ओ-दर यक-बारगी हिलने लगे
ताक़ थी वीरान लेकिन जगमगाहट सी हुई

एक पैकर सा धुएँ के बीच लहराने लगा
नीम-वा होंटों पे रक़्साँ मुस्कुराहट सी हुई

फिर भयानक रात फिर पुर-हौल सन्नाटा 'ज़ुबैर'
फिर खंडर में शहपरों की फड़फड़ाहट सी हुई