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रात काटी है जाग कर बाबा | शाही शायरी
raat kaTi hai jag kar baba

ग़ज़ल

रात काटी है जाग कर बाबा

हामिद सरोश

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रात काटी है जाग कर बाबा
दिन गुज़ारा है दार पर बाबा

हाथ आया न रौशनी का सराब
दूर था चाँद का नगर बाबा

अपने मरकज़ से दूर हो कर हम
हो गए और दर-ब-दर बाबा

चोट खा कर सँभल न पाए हम
फूल फेंका था ताक कर बाबा

हम फ़क़ीरों में मिल के बैठ कभी
तख़्त-ए-ताऊस से उतर बाबा

रास्तों के अज़ाब से डर कर
यूँ न हर हर क़दम पे मर बाबा

थी धनक दूर आसमानों में
और हम थे शिकस्ता-पर बाबा