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रात भी तेरा ध्यान भी हम भी | शाही शायरी
raat bhi tera dhyan bhi hum bhi

ग़ज़ल

रात भी तेरा ध्यान भी हम भी

मोहम्मद अली मोज

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रात भी तेरा ध्यान भी हम भी
चाँद भी आसमान भी हम भी

अपनी अपनी अना की क़ैद में हैं
ख़ाली ख़ाली मकान भी हम भी

खो गए गुम-रही के सहरा में
मंज़िलों के निशान भी हम भी

साया साया तमाज़तों के हुजूम
धूप भी साएबान भी हम भी

एक सच एक वाहिमा इक झूट
वो भी उस का गुमान भी हम भी

अपनी अपनी सक़ाफ़तों के अमीन
ग़ालिब-ए-ख़ुश-बयान भी हम भी

मस्लहत के हिसार में ऐ 'मौज'
क़ैद उर्दू ज़बान भी हम भी