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रात-भर जागे सवेरे सो गए | शाही शायरी
raat-bhar jage sawere so gae

ग़ज़ल

रात-भर जागे सवेरे सो गए

शाह हुसैन नहरी

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रात-भर जागे सवेरे सो गए
फैलते बढ़ते अँधेरे बो गए

हाथ आई ये अँधेरी रात ही
थे वो जो कुछ भी थे मेरे सो गए

ख़ौफ़-भर आवाज़ें हैं अतराफ़ में
मिशअलें बुझती हैं डेरे तो गए

हाथ मेरे थे वो मेरे ही तो थे
हाथ से छूटे वो मेरे लो गए

'शाह' अपने को मैं देखूँ किस तरह
थे उजाले के जो फेरे खो गए