रात भर बर्फ़ गिरती रही है
आग जितनी थी सब बुझ गई है
शम्अ कमरे में सहमी हुई है
खिड़कियों से हवा झाँकती है
जिस दरीचे पे बेलें सजी थीं
जाला मकड़ी वहाँ बुन रही है
सुब्ह तक मूड उखड़ा रहेगा
शाम कुछ इस तरह से कटी है
रात ने पँख फैला दिये हैं
शेर कहने की साअ'त यही है
उम्र भर धूप में रहते रहते
ज़िंदगी साँवली हो गई है

ग़ज़ल
रात भर बर्फ़ गिरती रही है
विकास शर्मा राज़