रास्ते से गए हटाए हम
फिर भी मंज़िल के पास आए हम
थे हक़ीक़त नज़र न आए हम
जब हुए ख़्वाब जगमगाए हम
गो चले थे, पहुँच न पाए हम
हम वहीं हैं जहाँ से आए हम
अपना बादल तलाशने के लिए
उमर भर धूप में नहाए हम
मंज़िलें उन की हर सफ़र उन का
रास्ते थे बने-बनाए हम
शोर दिन का पिला गया चुप्पी
नींद आई तो बड़बड़ाए हम
तेरी गलियों को घर किया जब से
ज़िंदगी के क़रीब आए हम
साथ ले कर मकान क्या चलते
घर को फिर घर ही छोड़ आए हम
तुझ पे ग़ुस्सा थे इसलिए जानाँ
बे-सबब ख़ुद पे तमतमाए हम
जब से हम बन गए तिरी आँखें
देख ले रोज़ डबडबाए हम
दर्द की आँच ग़म की भट्टी थी
फिर सरापा गए पकाए हम
ग़ज़ल
रास्ते से गए हटाए हम
नवनीत शर्मा