रास्ते अपनी नज़र बदला किए
हम तुम्हारा रास्ता देखा किए
अहल-ए-दिल सहरा में गुम होते रहे
ज़िंदगी बैठी रही पर्दा किए
एहतिमाम-ए-दार-ओ-ज़िंदाँ की क़सम
आदमी हर अहद ने पैदा किए
हम हैं और अब याद का आसेब है
उस ने वादे तो कई ईफ़ा किए
हाए-रे वहशत कि तेरे शहर का
हम सबा से रास्ता पूछा किए
ग़ज़ल
रास्ते अपनी नज़र बदला किए
राही मासूम रज़ा