रास्त अगर सर्व सी क़ामत करे
यार की आँखों में क़यामत करे
पानी होवे आरसी उस मुख को देख
ज़ोहरा उसे क्या कि इक़ामत करे
तूर मिरी अक़्ल-ओ-ख़िरद से है दूर
मुझ को सबी ख़ल्क़ मलामत करे
छब हुए जिस शख़्स को तुझ माह सी
सर्व-क़दाँ बीच इमामत करे
दहर में 'फ़ाएज़' सा नहीं एक तन
इश्क़ के क़ानून में क़यामत करे
ग़ज़ल
रास्त अगर सर्व सी क़ामत करे
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़