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रास्त अगर सर्व सी क़ामत करे | शाही शायरी
rast agar sarw si qamat kare

ग़ज़ल

रास्त अगर सर्व सी क़ामत करे

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

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रास्त अगर सर्व सी क़ामत करे
यार की आँखों में क़यामत करे

पानी होवे आरसी उस मुख को देख
ज़ोहरा उसे क्या कि इक़ामत करे

तूर मिरी अक़्ल-ओ-ख़िरद से है दूर
मुझ को सबी ख़ल्क़ मलामत करे

छब हुए जिस शख़्स को तुझ माह सी
सर्व-क़दाँ बीच इमामत करे

दहर में 'फ़ाएज़' सा नहीं एक तन
इश्क़ के क़ानून में क़यामत करे