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राहत ओ रंज से जुदा हो कर | शाही शायरी
rahat o ranj se juda ho kar

ग़ज़ल

राहत ओ रंज से जुदा हो कर

हुसैन आबिद

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राहत ओ रंज से जुदा हो कर
बैठ रहिए कहीं ख़ुदा हो कर

लौट आया है आँख के दर पर
ख़्वाब-ए-ताबीर से रिहा हो कर

लुत्फ़ आया नज़र को जलने में
चाँद के सामने दिया हो कर

ऐ मिरे शेर अपनी ताबानी
देख उस शोख़ से अदा हो कर

हब्स होता गया ख़ुमार अपना
रंग उड़ते गए हवा हो कर

ख़ेमा-ए-गुल लपेट ले हमदम
देख सरसर चली सबा हो कर